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ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन: खड़े होते ही चक्कर आने का कारण और इसे कैसे मैनेज करें
Table of Contents
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन क्या है?
- ब्लड प्रेशर क्या है?
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन में ब्लड प्रेशर कितना होता है?
- किसे ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन होने का खतरा ज्यादा होता है?
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन कितना आम है?
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन के लक्षण क्या हैं?
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन के कारण क्या हैं?
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन की जांच कैसे की जाती है?
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन का इलाज कैसे किया जाता है?
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन में कौन सी दवाएं/उपचार इस्तेमाल होते हैं?
- इलाज के साइड इफेक्ट्स
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन से होने वाली जटिलताएं क्या हैं?
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन के जोखिम को कैसे कम करें?
- अगर हमें ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन हो तो क्या उम्मीद करें?
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन का भविष्य क्या होता है?
- क्या ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन और पोस्टुरल टाचीकार्डिया सिंड्रोम (POTS) एक ही बीमारी हैं?
- डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
- निष्कर्ष
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन क्या है?
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन तब होता है जब आप बैठी या लेटी हुई स्थिति से अचानक खड़े होते हैं और आपका ब्लड प्रेशर तेजी से गिर जाता है। इसके लक्षणों में चक्कर आना, सिर हल्का महसूस होना, धुंधला दिखना और कुछ मामलों में बेहोशी भी शामिल हो सकती है। इसे पोस्टुरल हाइपोटेंशन भी कहा जाता है।
ब्लड प्रेशर क्या है?
ब्लड प्रेशर वह दबाव होता है जो खून आपकी धमनियों की दीवारों पर डालता है। इसे मिलीमीटर ऑफ मर्करी (mmHg) में मापा जाता है और इसमें दो नंबर होते हैं:
- सिस्टोलिक प्रेशर: ऊपरी संख्या, जो तब का दबाव मापता है जब आपका दिल धड़कता है।
- डायस्टोलिक प्रेशर: निचली संख्या, जो दिल की धड़कनों के बीच का दबाव मापता है।
सामान्य ब्लड प्रेशर लगभग 120/80 mmHg होता है। अगर ब्लड प्रेशर 90/60 mmHg या उससे कम हो जाए, तो इसे हाइपोटेंशन (लो ब्लड प्रेशर) कहा जाता है।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन में ब्लड प्रेशर कितना होता है?
अगर कोई व्यक्ति खड़े होने के 3 मिनट के अंदर सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर में कम से कम 20 mmHg या डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर में कम से कम 10 mmHg की गिरावट महसूस करता है, तो इसे ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन कहा जाता है। इस अचानक गिरावट के कारण दिमाग तक कम ब्लड पहुंचता है, जिससे चक्कर आना, धुंधला दिखना और बेहोशी जैसे लक्षण हो सकते हैं।
किसे ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन होने का खतरा ज्यादा होता है?
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन किसी को भी हो सकता है, लेकिन कुछ लोगों में इसका खतरा ज्यादा रहता है:
- बुजुर्ग: उम्र बढ़ने के साथ शरीर का ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने का सिस्टम कमजोर हो जाता है।
- लंबे समय तक बिस्तर पर रहने वाले लोग: बेड रेस्ट से शरीर का कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम कमजोर हो सकता है।
- गर्भवती महिलाएं: प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव और बढ़ा हुआ ब्लड वॉल्यूम इसकी वजह हो सकते हैं।
- कुछ बीमारियों से जूझ रहे लोग: पार्किंसंस, हार्ट डिजीज, डायबिटीज और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर वाले लोगों में इसका खतरा ज्यादा रहता है।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन कितना आम है?
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन कुल जनसंख्या के लगभग 6% लोगों को प्रभावित करता है। हालांकि, 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में यह ज्यादा आम है, जहां 10-30% लोग इसके लक्षण महसूस करते हैं। यह समस्या लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहने वाले मरीजों, हाल ही में मां बनी महिलाओं, या तेज ग्रोथ स्पर्ट से गुजर रहे किशोरों में भी देखने को मिल सकती है।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन के लक्षण क्या हैं?
जब कोई व्यक्ति खड़े होते ही अचानक ब्लड प्रेशर ड्रॉप होता है, तो शरीर अलग-अलग तरीकों से इसका संकेत देता है। इसके मुख्य लक्षण इस तरह हो सकते हैं:
- चक्कर या हल्कापन महसूस होना: खड़े होते ही सिर हल्का या घूमता हुआ महसूस होना
- धुंधला दिखना: अचानक विजन फोकस से बाहर हो जाना या धुंधलापन आना
- बेहोशी (सिंकोप): गंभीर मामलों में व्यक्ति अचानक होश खो सकता है
- मतली (नॉज़िया): मन खराब होना या उल्टी जैसा महसूस होना
- थकान: अचानक कमजोरी या बहुत ज्यादा थकावट महसूस होना
- भ्रम (कन्फ्यूजन): कुछ लोगों को दिमागी धुंधलापन या डिसऑरिएंटेशन हो सकता है
- मांसपेशियों में कंपन: शरीर कांपने या झनझनाहट जैसा महसूस कर सकता है
ये लक्षण आमतौर पर बैठने या लेटने के बाद ठीक हो जाते हैं। लेकिन अगर लक्षण बार-बार होते हैं या गंभीर रूप लेते हैं, तो गिरने और चोट लगने का खतरा बढ़ सकता है, इसलिए सही समय पर ध्यान देना जरूरी है।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन के कारण क्या हैं?
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन के कारण मुख्य रूप से दो कैटेगरी में बांटे जाते हैं: न्यूरोजेनिक (तंत्रिका तंत्र से जुड़े) और नॉन-न्यूरोजेनिक (अन्य कारक)।
- न्यूरोजेनिक कारण: ये उन बीमारियों से जुड़े होते हैं जो ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम की ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने की क्षमता को प्रभावित करती हैं। पार्किंसन रोग इसका एक उदाहरण है, जिसमें नर्वस सिस्टम कमजोर पड़ने से ब्लड प्रेशर सही से एडजस्ट नहीं हो पाता। मल्टीपल सिस्टम एट्रोफी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो ब्लड प्रेशर को अनियंत्रित कर सकता है। इसी तरह, डायबिटिक न्यूरोपैथी लंबे समय तक डायबिटीज रहने से नसों को नुकसान पहुंचाती है, जिससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने की क्षमता घट जाती है।
- नॉन-न्यूरोजेनिक कारण: ये वे कारण होते हैं जो नर्वस सिस्टम से सीधे तौर पर जुड़े नहीं होते। डिहाइड्रेशन एक आम कारण है, जिसमें शरीर में पानी की कमी से ब्लड वॉल्यूम घटता है और ब्लड प्रेशर गिर सकता है। रक्तस्राव (ब्लड लॉस) होने पर शरीर में पर्याप्त ब्लड नहीं रहता, जिससे ब्लड प्रेशर अचानक कम हो सकता है। कुछ दवाएं, जैसे डाइयुरेटिक्स (पेशाब बढ़ाने वाली दवाएं), एंटीडिप्रेशेंट्स, और ब्लड प्रेशर कम करने वाली अन्य दवाएं, भी अचानक लो बीपी का कारण बन सकती हैं। हृदय संबंधी समस्याएं भी जिम्मेदार हो सकती हैं, क्योंकि अगर दिल सही से पंप नहीं कर पा रहा या हार्ट रेट बहुत धीमा या तेज़ हो रहा है, तो ब्लड फ्लो कम हो सकता है। इसके अलावा, पर्यावरणीय कारणों में ज्यादा देर तक खड़े रहना या गर्मी में ज्यादा समय बिताना शामिल है, जिससे ब्लड प्रेशर अचानक गिर सकता है।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन की जांच कैसे की जाती है?
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन का पता लगाने के लिए आपका डॉक्टर निम्न जांचें कर सकता है:
- मेडिकल हिस्ट्री और दवाओं की समीक्षा: कुछ दवाएं या स्वास्थ्य स्थितियां ब्लड प्रेशर में गिरावट का कारण बन सकती हैं।
- शारीरिक परीक्षण: डॉक्टर यह जांचेंगे कि कोई अन्य स्वास्थ्य समस्या तो नहीं जो ब्लड प्रेशर कंट्रोल को प्रभावित कर रही हो।
- ब्लड प्रेशर मापना: आपका ब्लड प्रेशर अलग-अलग स्थितियों में मापा जाएगा—लेटे हुए, बैठकर और खड़े होकर—ताकि यह देखा जा सके कि खड़े होते ही ब्लड प्रेशर में कितनी गिरावट होती है।
- ब्लड टेस्ट: यह टेस्ट एनीमिया, लो ब्लड शुगर या अन्य मेटाबॉलिक कारणों का पता लगाने में मदद करता है।
- हृदय की जांच: इकोकार्डियोग्राम के जरिए यह देखा जाता है कि आपका हृदय ठीक से काम कर रहा है या नहीं।
अगर लक्षण ज्यादा गंभीर हों या बार-बार हों, तो अतिरिक्त जांच की जा सकती है: टिल्ट टेबल टेस्ट: इसमें आपको एक खास तरह की टेबल पर लेटाकर धीरे-धीरे खड़ा किया जाता है, ताकि यह देखा जा सके कि पोजीशन बदलने से आपका ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट कैसे प्रभावित होते हैं।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन का इलाज कैसे किया जाता है?
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन का इलाज आमतौर पर इसके कारणों को ठीक करने पर निर्भर करता है:
- डिहाइड्रेशन का इलाज
- दवाओं में बदलाव
- हृदय संबंधी समस्याओं का प्रबंधन
- जीवनशैली में बदलाव, जैसे:
- बैठी या लेटी हुई स्थिति से धीरे-धीरे उठना।
- लंबे समय तक खड़े रहने या ज्यादा गर्मी वाले माहौल से बचना।
- बड़े भोजन की बजाय छोटे-छोटे और बार-बार खाने से पोस्ट-खाने वाली चक्कर की समस्या को रोका जा सकता है।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन में कौन सी दवाएं/उपचार इस्तेमाल होते हैं?
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन के इलाज का प्लान इसकी गंभीरता और कारण पर निर्भर करता है। इसमें शामिल हो सकते हैं:
- ब्लड वॉल्यूम बढ़ाने वाली दवाएं
- ब्लड वेसल्स को संकुचित करने वाली दवाएं
- लेग्स में ब्लड फ्लो बेहतर करने के लिए कंप्रेशन स्टॉकिंग्स
- नमक और फ्लूइड की मात्रा बढ़ाना
- मांसपेशियों की ताकत और ब्लड सर्कुलेशन सुधारने के लिए फिजिकल थेरेपी
इलाज के साइड इफेक्ट्स
हालांकि ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन का इलाज आमतौर पर सुरक्षित रहता है, लेकिन कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे:
- सिरदर्द
- दिल की धड़कन तेज होना (पैल्पिटेशन)
- शरीर में पानी जमा होना (फ्लूइड रिटेंशन)
- लेटते समय हाई ब्लड प्रेशर (सुपाइन हाइपरटेंशन)
अपने डॉक्टर के साथ मिलकर ऐसा इलाज चुनें जो आपके लक्षणों को अच्छे से कंट्रोल करे और साइड इफेक्ट्स कम से कम हों।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन से होने वाली जटिलताएं क्या हैं?
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन के कारण दिमाग और अन्य अंगों में ब्लड फ्लो कम हो सकता है, जिससे कई तरह की समस्याएँ हो सकती हैं। कुछ संभावित जटिलताएं इस प्रकार हैं:
- गिरना और चोट लगना: चक्कर आना और बेहोशी की वजह से गिरने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे फ्रैक्चर, सिर में चोट या अन्य गंभीर चोटें हो सकती हैं।
- हृदय संबंधी समस्याएँ: लगातार लो ब्लड प्रेशर रहने से दिल पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे हार्ट फेल्योर या अनियमित धड़कन (अरहाइथमिया) का खतरा बढ़ सकता है।
- सोचने-समझने की क्षमता पर असर: बार-बार दिमाग में ब्लड फ्लो कम होने से संज्ञानात्मक क्षमताएँ कमजोर पड़ सकती हैं, जिससे डिमेंशिया जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन के जोखिम को कैसे कम करें?
कुछ उपाय अपनाकर ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन का खतरा कम किया जा सकता है या अगर यह समस्या पहले से है, तो इसके लक्षणों को बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकता है:
- हाइड्रेटेड रहें: दिनभर पर्याप्त मात्रा में पानी पिएँ ताकि ब्लड वॉल्यूम बना रहे।
- अचानक पोजीशन न बदलें: खड़े होते समय धीरे-धीरे उठें और कुछ सेकंड रुककर ही चलें।
- कंप्रेशन स्टॉकिंग्स पहनें: ये पैरों से दिल तक ब्लड फ्लो सुधारने में मदद करती हैं।
- डाइट में बदलाव करें: छोटे-छोटे और बार-बार मील लें, साथ ही शराब का सेवन सीमित करें, क्योंकि ये लो ब्लड प्रेशर को बढ़ा सकते हैं।
- नियमित एक्सरसाइज करें: शारीरिक गतिविधि करने से हृदय स्वास्थ्य में सुधार होता है और ब्लड प्रेशर बेहतर तरीके से नियंत्रित रहता है।
- दवाओं की समीक्षा करें: कुछ दवाएँ, जैसे ड्यूरेटिक्स या एंटीडिप्रेसेंट्स, लो ब्लड प्रेशर का कारण बन सकती हैं। डॉक्टर से सलाह लें कि क्या डोज़ में बदलाव या कोई वैकल्पिक दवा की जरूरत है।
अगर हमें ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन हो तो क्या उम्मीद करें?
अगर आपको ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन है, तो आपका डॉक्टर इसकी वजह का पता लगाने और सही इलाज का प्लान बनाने में मदद करेगा। ज़रूरी है कि आप अपने ट्रीटमेंट प्लान को नियमित रूप से फॉलो करें और अगर लक्षणों में कोई बदलाव आए या कोई चिंता हो, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन का भविष्य क्या होता है?
इसका असर इसकी वजह और इलाज के असर पर निर्भर करता है। ज्यादातर लोग लाइफस्टाइल में बदलाव और सही दवाओं से अपने लक्षणों को कंट्रोल कर सकते हैं और जटिलताओं से बच सकते हैं। लेकिन अगर यह किसी क्रॉनिक बीमारी की वजह से हुआ है, तो कुछ लोगों को लंबे समय तक लक्षण झेलने पड़ सकते हैं या जटिलताएं विकसित हो सकती हैं।
क्या ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन और पोस्टुरल टाचीकार्डिया सिंड्रोम (POTS) एक ही बीमारी हैं?
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन और पोस्टुरल टाचीकार्डिया सिंड्रोम (POTS) कुछ मामलों में मिलते-जुलते हो सकते हैं, लेकिन ये दो अलग-अलग स्थितियाँ हैं। दोनों में खड़े होने पर ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट में बदलाव होता है, लेकिन इनका पैटर्न अलग होता है:
- ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन: खड़े होते ही ब्लड प्रेशर में तेज़ गिरावट होती है, जिससे चक्कर आना या बेहोशी महसूस हो सकती है।
- POTS: खड़े होते ही हार्ट रेट तेज़ी से बढ़ जाता है (कम से कम 30 बीट प्रति मिनट), लेकिन ब्लड प्रेशर में कोई खास गिरावट नहीं होती। इसके लक्षणों में चक्कर आना, थकान और दिल की धड़कन तेज़ होना (पैल्पिटेशन) शामिल हो सकते हैं।
डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
अगर आपको बार-बार खड़े होने पर चक्कर, सिर हल्का महसूस होना या बेहोशी जैसी समस्याएँ होती हैं, तो डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है। डॉक्टर आपकी स्थिति की सही वजह का पता लगाकर उचित इलाज बता सकते हैं। खासतौर पर, अगर लक्षण बहुत गंभीर, लंबे समय तक बने रहते हैं या आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दिक्कतें पैदा कर रहे हैं, तो बिना देरी किए मेडिकल सलाह लें।
निष्कर्ष
ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन एक आम समस्या है जो आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित कर सकती है। इसके कारण, लक्षण और इलाज के विकल्प समझकर, आप अपने लक्षणों को मैनेज कर सकते हैं और गिरने या चोट लगने के जोखिम को कम कर सकते हैं।
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