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ऑस्टियोपीनिया: कमजोर हड्डियों के शुरुआती संकेत और उन्हें मजबूत करने के असरदार तरीके

Last Updated On: Apr 11 2025

ऑस्टियोपीनिया क्या है?

ऑस्टियोपीनिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें हड्डियों की मिनरल डेंसिटी (BMD) सामान्य से कम हो जाती है। यह ऑस्टियोपोरोसिस से पहले की स्टेज होती है, जिसमें हड्डियों का नुकसान और ज्यादा हो जाता है। ऑस्टियोपीनिया में हड्डियां थोड़ी कमजोर हो जाती हैं, लेकिन ऑस्टियोपोरोसिस जितनी नाजुक नहीं होतीं। इसे ऐसे समझें कि आपकी हड्डियां आपको पहले ही संकेत दे रही हैं कि अब उन्हें ज्यादा देखभाल और मजबूती की जरूरत है।

ऑस्टियोपीनिया और ऑस्टियोपोरोसिस में क्या फर्क है?

दोनों ही स्थितियों में हड्डियों की मजबूती कम होती है, लेकिन इनके गंभीरता स्तर अलग-अलग होते हैं:

  • ऑस्टियोपीनिया में बोन मिनरल डेंसिटी (BMD) स्कोर -1 से -2.5 के बीच होता है। इसका मतलब है कि हड्डियां सामान्य से कमजोर हैं, लेकिन इतनी नाजुक नहीं हुई हैं कि हल्के झटकों से टूट जाएं।
  • ऑस्टियोपोरोसिस इससे ज्यादा गंभीर होता है, जिसमें BMD स्कोर -2.5 से भी कम हो जाता है। इस स्थिति में हड्डियां बहुत ज्यादा खोखली हो जाती हैं और हल्की सी चोट या गिरने से भी फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है।

यानी, ऑस्टियोपीनिया हड्डियों की सेहत के लिए "येलो अलर्ट" है, जबकि ऑस्टियोपोरोसिस "रेड अलर्ट" है, जो बताता है कि फ्रैक्चर का खतरा ज्यादा बढ़ गया है। अगर ऑस्टियोपीनिया के लक्षण समय रहते पकड़ लिए जाएं, तो सही ट्रीटमेंट और लाइफस्टाइल से हड्डियों को मजबूत बनाया जा सकता है, ताकि वे और ज्यादा कमजोर न हों।

ऑस्टियोपीनिया कितना आम है?

ऑस्टियोपीनिया काफी आम है, खासतौर पर उम्र बढ़ने के साथ। नेशनल ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन के मुताबिक, 4.3 करोड़ से ज्यादा अमेरिकी वयस्कों की हड्डियों की मिनरल डेंसिटी कम है या उन्हें ऑस्टियोपीनिया है। अंदाजा लगाया जाता है कि 50 साल से ज्यादा उम्र के लगभग आधे लोगों में किसी न किसी स्तर पर हड्डियों का नुकसान होता है।

खासतौर पर महिलाओं में, खासकर मेनोपॉज के बाद, इसका खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि हार्मोनल बदलाव हड्डियों के नुकसान को तेज कर देते हैं।

ऑस्टियोपीनिया के लक्षण क्या हैं?

ऑस्टियोपीनिया की चालाकी ये है कि इसके सीधे-सीधे लक्षण आमतौर पर नजर नहीं आते। आपको ये महसूस नहीं होता कि आपकी हड्डियां कमजोर हो रही हैं। लेकिन फिर भी कुछ संकेत होते हैं, जिन पर ध्यान देना जरूरी है:

  • बार-बार स्ट्रेस फ्रैक्चर होना या हल्की चोट से हड्डी टूट जाना
  • समय के साथ कद का कम होना
  • पीठ दर्द या शरीर की मुद्रा (पोश्चर) में बदलाव, खासतौर पर रीढ़ की हड्डी में कॉम्प्रेशन फ्रैक्चर की वजह से

ऑस्टियोपीनिया होने की वजह क्या है?

ऑस्टियोपीनिया के कारण मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं:

1. उम्र के साथ हड्डियों का प्राकृतिक कमजोर होना

हमारी हड्डियां लगातार टूटती और बनती रहती हैं। लेकिन 30 साल की उम्र के बाद हड्डियों का टूटना, बनने की प्रक्रिया से ज्यादा तेज हो जाता है, जिससे धीरे-धीरे बोन डेंसिटी कम होने लगती है। महिलाओं में मेनोपॉज के बाद यह प्रक्रिया और तेजी से होती है, जिससे हड्डियां ज्यादा कमजोर हो सकती हैं।

2. कुछ बीमारियां और दवाइयां

कुछ स्वास्थ्य समस्याएं और ट्रीटमेंट भी हड्डियों को कमजोर कर सकते हैं, जैसे:

  • रूमेटॉइड आर्थराइटिस और दूसरी सूजन वाली बीमारियां
  • थायरॉइड और पैराथायरॉइड से जुड़ी गड़बड़ियां
  • सीलिएक डिजीजv और इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज (IBD)
  • कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी
  • लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉइड या कुछ एंटी-सीज़र (मिर्गी की) दवाइयां लेना

ऑस्टियोपीनिया का खतरा किन लोगों को ज्यादा होता है?

उम्र और जेंडर के अलावा, कुछ और फैक्टर्स भी हैं जो ऑस्टियोपीनिया होने का खतरा बढ़ा सकते हैं:

  • परिवार में ऑस्टियोपोरोसिस या हड्डी टूटने का इतिहास
  • बैठे-बैठे ज्यादा समय बिताना और वेट-बेयरिंग एक्सरसाइज न करना
  • गलत खान-पान, खासकर कैल्शियम और विटामिन D की कमी
  • धूम्रपान और ज्यादा शराब पीना
  • कम बॉडी वेट या बहुत पतला हड्डियों का स्ट्रक्चर
  • कुछ खास नस्लें, जैसे कि कोकेशियन और एशियाई महिलाएं

अगर आपको इनमें से कोई भी रिस्क फैक्टर है, तो आपको अपनी हड्डियों की सेहत को लेकर और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। जैसे, अगर परिवार में किसी को ऑस्टियोपोरोसिस रहा है, तो 65 साल की उम्र से पहले ही बोन डेंसिटी टेस्ट करवाना एक समझदारी भरा कदम हो सकता है।

ऑस्टियोपीनिया से होने वाली जटिलताएं क्या हैं?

ऑस्टियोपीनिया का सबसे बड़ा खतरा हड्डियों के फ्रैक्चर का बढ़ा हुआ रिस्क होता है।

  • हड्डियां कमजोर और नाजुक हो जाती हैं, जिससे मामूली गिरावट या हल्के झटके से भी फ्रैक्चर हो सकता है। ये फ्रैक्चर दर्द, चलने-फिरने में दिक्कत, और गंभीर मामलों में ब्लड क्लॉट्स या इन्फेक्शन जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
  • रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) में कंप्रेशन फ्रैक्चर एक बड़ी चिंता होती है। इनमें कशेरुकाओं (वर्टिब्रे) में छोटे-छोटे क्रैक आ जाते हैं, जिससे पीठ दर्द, कद का छोटा होना और झुकी हुई मुद्रा (stooped posture) हो सकती है। अगर बार-बार ऐसे फ्रैक्चर हों, तो काइफोसिस (kyphosis) या "डॉवेगर हंप" जैसी स्थिति बन सकती है।
  • अगर ऑस्टियोपीनिया को नजरअंदाज किया जाए, तो यह धीरे-धीरे ऑस्टियोपोरोसिस में बदल सकता है। इसलिए, हड्डियों की सेहत बनाए रखने और फ्रैक्चर से बचने के लिए जल्दी पहचान और सही इलाज बेहद जरूरी है।

ऑस्टियोपीनिया की पहचान कैसे होती है?

ऑस्टियोपीनिया का पता लगाने के लिए बोन मिनरल डेंसिटी (BMD) टेस्ट किया जाता है। इसके लिए डुअल-एनर्जी एक्स-रे एब्सॉर्प्शियोमेट्री (DEXA) स्कैन नामक एक खास तरह का एक्स-रे किया जाता है। ये टेस्ट बिना दर्द के होता है और आमतौर पर कूल्हों (hip) और रीढ़ (spine) की हड्डियों की डेंसिटी मापने के लिए किया जाता है। DEXA स्कैन के नतीजे T-स्कोर के रूप में आते हैं, जो आपकी हड्डियों की मजबूती की तुलना एक 30 साल के स्वस्थ व्यक्ति की हड्डियों से करता है:

  • T-स्कोर -1 से -2.5 के बीच हो तो इसका मतलब है कि आपको ऑस्टियोपीनिया है।
  • T-स्कोर -2.5 से कम हो तो ये ऑस्टियोपोरोसिस की ओर इशारा करता है।

DEXA स्कैन आपकी हड्डियों की सेहत का एक स्पष्ट आंकलन देता है और डॉक्टर को सही इलाज तय करने में मदद करता है। इसके अलावा, डॉक्टर ब्लड टेस्ट भी करा सकते हैं, ताकि यह देखा जा सके कि कहीं कोई दूसरी बीमारी हड्डियों के नुकसान की वजह तो नहीं बन रही।

ऑस्टियोपीनिया का इलाज क्या है?

ऑस्टियोपीनिया के इलाज का मकसद हड्डियों की और कमजोरी रोकना और फ्रैक्चर के खतरे को कम करना होता है। इसके लिए आमतौर पर दो तरह के उपाय अपनाए जाते हैं:

1. लाइफस्टाइल में बदलाव

  • कैल्शियम (1000-1200 mg/दिन) और विटामिन D (600-800 IU/दिन) सही मात्रा में लें – इसे डाइट या सप्लीमेंट्स के जरिए पूरा किया जा सकता है।
  • वेट-बेयरिंग और रेजिस्टेंस एक्सरसाइज करें – जैसे वॉकिंग, जॉगिंग, वेट ट्रेनिंग, और योग, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करते हैं।
  • स्मोकिंग छोड़ें और शराब का सेवन कम करें, क्योंकि ये हड्डियों को नुकसान पहुंचाते हैं।
  • संतुलित डाइट लें और स्वस्थ वजन बनाए रखें, क्योंकि बहुत ज्यादा दुबला शरीर भी हड्डियों के नुकसान का खतरा बढ़ा सकता है।

2. दवाइयां

  • बिस्फॉस्फोनेट्स – ये दवाइयां हड्डियों के टूटने की गति को कम करके उनकी मजबूती बनाए रखने में मदद करती हैं और फ्रैक्चर के खतरे को कम करती हैं। इन्हें आमतौर पर उन लोगों को दिया जाता है जिनकी हड्डियों में ज्यादा कमजोरी होती है या जिनमें अन्य जोखिम फैक्टर होते हैं।
  • हॉर्मोन थेरेपी – मेनोपॉज के शुरुआती दौर में एस्ट्रोजन थेरेपी हड्डियों को कमजोर होने से बचा सकती है, लेकिन इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं, इसलिए इसे केवल बोन हेल्थ के लिए रूटीन में नहीं दिया जाता।
  • अन्य दवाइयां – आपकी स्थिति के आधार पर डॉक्टर रालॉक्सिफीन, डेनोसुमैब, या टेरीपराटाइड जैसी दवाइयों की सलाह दे सकते हैं, जो हड्डियों को मजबूत करने में मदद करती हैं।

सही इलाज के लिए डॉक्टर से सलाह लें और अपनी हड्डियों की सेहत के हिसाब से पर्सनलाइज़्ड ट्रीटमेंट प्लान बनवाएं। बोन डेंसिटी की नियमित जांच से यह पता लगाया जा सकता है कि इलाज कितना असरदार हो रहा है और जरूरत के अनुसार इसमें बदलाव किए जा सकते हैं।

क्या ऑस्टियोपीनिया को रोका जा सकता है?

उम्र बढ़ने के साथ कुछ हद तक हड्डियों का कमजोर होना तो स्वाभाविक है, लेकिन आप अपनी हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए कई कदम उठा सकते हैं:

  • कैल्शियम और विटामिन D भरपूर लें - 1000-1200 mg कैल्शियम रोज़ाना लें, जिसे दूध, दही, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियों और फोर्टिफाइड फूड्स से पाया जा सकता है। विटामिन D के लिए धूप में समय बिताएं, फैटी फिश, अंडे की जर्दी खाएं, और जरूरत पड़ने पर सप्लीमेंट लें।
  • नियमित एक्सरसाइज करें - वेट-बेयरिंग एक्सरसाइज जैसे वॉकिंग, जॉगिंग, डांसिंग और रेजिस्टेंस ट्रेनिंग (वेट लिफ्टिंग या रेजिस्टेंस बैंड के साथ वर्कआउट) से हड्डियों को मजबूत किया जा सकता है। हफ्ते में कम से कम 5 दिन, 30 मिनट एक्सरसाइज का लक्ष्य रखें।
  • धूम्रपान छोड़ें और शराब सीमित करें - स्मोकिंग और ज्यादा शराब हड्डियों को कमजोर करती हैं और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ाती हैं।
  • बोन-डेंसिटी की जांच करवाएं - अगर आप 65+ साल की महिला, 70+ साल के पुरुष हैं, या आपके अंदर ऑस्टियोपीनिया के रिस्क फैक्टर हैं, तो डॉक्टर से DEXA स्कैन कराने की सलाह लें ताकि समय रहते हड्डियों की सेहत का पता लगाया जा सके।

अगर ऑस्टियोपीनिया हो जाए तो क्या उम्मीद करें?

अगर आपको ऑस्टियोपीनिया है, तो हड्डियों की घनत्व (बोन डेंसिटी) कम हो सकती है, जिससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आपको ऑस्टियोपोरोसिस हो ही जाएगा। नियमित एक्सरसाइज, कैल्शियम और विटामिन D का सही मात्रा में सेवन हड्डियों के नुकसान को धीमा कर सकता है। आपका डॉक्टर हड्डियों की सेहत बनाए रखने और फ्रैक्चर के खतरे को कम करने के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव या कुछ दवाइयां लेने की सलाह दे सकता है।

क्या ऑस्टियोपीनिया को ठीक किया जा सकता है?

ऑस्टियोपीनिया का कोई पक्का इलाज नहीं है, लेकिन हड्डियों के नुकसान की रफ्तार को धीमा किया जा सकता है और कुछ हद तक इसे रीवर्स भी किया जा सकता है। सही लाइफस्टाइल और मेडिकल ट्रीटमेंट अपनाने से समय के साथ DEXA स्कैन पर आपका T-स्कोर सुधार सकता है।

कुछ शोधों में पाया गया है कि बिस्फॉस्फोनेट दवाओं का लगातार इस्तेमाल करने से 3-4 साल में हड्डियों की डेंसिटी लगभग 5% तक बढ़ सकती है। इसके अलावा, नियमित एक्सरसाइज, सही मात्रा में कैल्शियम और विटामिन D लेने से भी हड्डियों की मजबूती पर सकारात्मक असर पड़ता है।

डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?

अगर आपके अंदर ऑस्टियोपीनिया या ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम फैक्टर मौजूद हैं, तो अपनी हड्डियों की सेहत को लेकर डॉक्टर से सलाह लेना अच्छा रहेगा। कुछ खास कारण जिनकी वजह से आपको मेडिकल सलाह लेनी चाहिए:

  • आप 65 साल से अधिक उम्र की महिला या 70 साल से अधिक उम्र के पुरुष हैं।
  • आपके परिवार में ऑस्टियोपोरोसिस या हड्डियों में फ्रैक्चर का इतिहास है।
  • आपको मामूली गिरावट या चोट से फ्रैक्चर हो चुका है।
  • आपको कोई ऐसी मेडिकल कंडीशन है या आप ऐसी दवाइयां ले रहे हैं जो हड्डियों की सेहत को प्रभावित कर सकती हैं।
  • आपको पीठ दर्द, कद में कमी, या शरीर के पोस्चर में बदलाव जैसे लक्षण महसूस हो रहे हैं।

निष्कर्ष

ऑस्टियोपीनिया भले ही बिना किसी स्पष्ट लक्षणों के हो, लेकिन यह आपकी हड्डियों की सेहत के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी संकेत है। अगर आप अपनी हड्डियों की सेहत को लेकर चिंतित हैं, तो मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर से संपर्क करें और बोन डेंसिटी स्कैन करवाएं, ताकि आपको व्यक्तिगत जरूरतों के अनुसार सही सलाह मिल सके। भारतभर में अत्याधुनिक डायग्नोस्टिक लैब्स के नेटवर्क और घर पर सैंपल कलेक्शन की सुविधा देने वाले अनुभवी फ्लेबोटोमिस्ट्स की टीम के साथ, मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर आपकी हड्डियों की सेहत की जांच और निगरानी में भरोसेमंद साथी बन सकता है। आज ही अपनी हड्डियों की सेहत को प्राथमिकता दें, ताकि भविष्य में आपको इसका फायदा मिले!

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